7/9/2022 से 14/9/2022
अब तक जगन्नाथ पुरी अथवा ओडीशा की यात्रा कभी नहीं की थी।
कुछ दिन पूर्व मैंने ग्वालियर से पुरी 7 सितंबर को जाने का 10 सितंबर को पुरी से भुवनेश्वर से हावड़ा, 13 सितंबर को हावड़ा से ग्वालियर के लिए वापसी का स्लीपर क्लास रेल टिकिट बुक कर लिया, कोई मित्र शॉर्ट नोटिस पर साथ जाने को तैयार नहीं हुआ था, कुछ इसलिए भी नहीं गए कि वे स्लीपर क्लास रेलयात्रा पसंद नहीं करते हैं, कुछ केवल आरामदेह निजी वाहन यात्रा तथा वायुयात्रा ही पसंद करते हैं।
मुझे नजदीक की तारीख में एक ही टिकिट वरिष्ठ नागरिक कोटे से कन्फर्म मिल रहा था जो कि मेरे सहकर्मी ने बुक कर दिया। अतः अकेले ही यात्रा का मन बना लिया।
कुछ वर्षों से मैं अकेले यात्रा से बचने की नीति पर चल रहा था। मेरी इस यात्रा का मुख्य उद्देश्य "चौबीस परगना" जिला बंगाल की मशहूर फलों के पेड़ तैयार करने वाली नर्सरियां देखना तथा बागवानी की बायो टेक्नोलॉजी का तकनीकी अध्ययन करना था, मेरा यह हॉबी प्रोजेक्ट जिसमें कृषि भूमि क्रय भी शामिल था काफी समय से पेंडिंग चल रहा था।
केवल एक दिन का अतिरिक्त समय खर्च कर मुझे पुरी यात्रा भी मुफ्त बोनस के रूप में मिल रही थी।
बुधवार 7 सितंबर को मैं उत्कल एक्स्प्रेस से ओडिशा के प्राकृतिक दृश्यों को देखता हुआ 9 सितंबर की दोपहर को पुरी पहुंचा, ट्रेन 8 घण्टे लेट हुई।
पुरी रेलवे स्टेशन पर रिटायरिंग रूम मेरे सहकर्मियों ने ऑन लाईन बुक कर रखा था, अतः मैं तुरंत तैयार हो कर मोबाइल फोन सामान के साथ ही स्टेशन पर छोड़ कर, केवल एक छाता व कुछ नगदी साथ ले चप्पल पहनकर 30 रुपए में मिनी बस से मंदिर पंहुचा।
विशाल जगन्नाथ मंदिर में काफी भीड़ थी, जूते जमा करने वाले सभी काउंटर पर काफी लंबी लाइनें लगी हुई थीं अतः एक कोनें में राम भरोसे चप्पल उतार कर मन्दिर के मुख्य द्वार में यह सोचकर प्रवेश किया कि अगर वापसी पर चप्पलें नहीं मिलीं तो नई खरीद लूंगा।
मुख्य मंदिर की नई लाइन द्वारा अंदर प्रवेश करते समय मेरे छाते को देख कर तैनात पुलिस कर्मी ने अपनी सरकारी चेतना का प्रयोग करते हुए मुझे अंदर जाने से रोक दिया कि छाता लेकर मंदिर में जाना सख्त मना है, जबकि मुख्य द्वार से प्रवेश में मेरी पूरी सुरक्षा जांच हो चुकी थी और मुझे छाते के साथ ही प्रवेश दिया गया, लेकिन उस सुरक्षा कर्मी से बहस करना व्यर्थ था।
मैंने इधर-उधर घूमते हुए विचार किया कि छाते को कचरा पेटी में फेंककर मंदिर के अंदर प्रवेश किया जाय और बाहर निकलने के बाद नया छाता खरीदा जाय, लेकिन इस विकल्प को पैसे का अपव्यय मान कर मैंने छाते को पेंट की जेब में रखकर पुनः अंदर जाने के प्रयास में सफलता प्राप्त की।
अन्य सभी बड़े तीर्थों की तरह प्रसन्नता से धक्के खाते हुए पवित्र दर्शन किया।
उस अति विशाल मंदिर परिसर का पूर्ण भ्रमण कर बाहर निकला तो जिस स्थान पर चप्पल उतारी थी उसे ढूंढने में काफी समय लगा। लेकिन चप्पलें यथावत जैसी रखी थीं वैसी ही मिलीं।
शाम होने से पहले ही बस द्वारा 50 रुपए जाने के तथा 50 रुपए वापसी के खर्च में प्रसिद्ध कोणार्क सूर्य मंदिर भ्रमण भी कर लिया। विशाल सूर्य मंदिर की जर्जर अवस्था के कारण उसमें अंदर प्रवेश वर्जित है, चारों तरफ से चक्कर लगा कर देखा। फोन स्टेशन पर ही छोड़ देने के कारण फोटोग्राफी नहीं की जा सकी।
अगले दिन शनिवार की रात को फलकनुमा एक्स्प्रेस ट्रेन लेट होने से भुवनेश्वर से हावड़ा देर रात पहुंचा जा सका।
रविवार 11 सितंबर तथा सोमवार 12 सितंबर 2022 दो दिन एक बंगलादेशी मित्र के बेटे इमोन साहा जो कि अब भारतीय नागरिक है तथा बारासात के अपने फ्लैट में रहता है के साथ चौबीस परगना जिले के अलग-अलग स्थानों पर 20 से अधिक प्लांट नर्सरी विजिट कीं तथा सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर कुछ पौधे खरीदे।
इमोन को दुभाषिए के रूप में साथ रखने से ही यह यात्रा सफल हो सकी क्योंकि बंगाल के सुदूर ग्रामीण इलाकों में हिंदी अंग्रेजी बोलने वाले कम ही मिलते हैं।
रविवार को सुबह ग्वालियर से अपने ऑफिस के एक कार्यकर्ता राम किशन को पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार अपनी सहायता हेतु ग्वालियर से बुला लिया था। कलकत्ते में कोई शासकीय रोजगार परीक्षा का सेंटर होने के कारण राम किशन को बहुत ही मुश्किल से रूम मिला।
रविवार को पूरे दिन के लिए एक टैक्सी ले कर मुचीशा क्षेत्र का भ्रमण किया।
सोमवार को चाकला क्षेत्र का भ्रमण किया, जहां पर 18वीं सदी निर्मित बंगाल का प्रसिद्ध "बाबा लोकनाथ मंदिर" व "चाकला धाम" तीर्थ स्थल है।
संपूर्ण यात्रा के दौरान लगातार बारिश होती रही। एक नर्सरी में पैर फिसलने से मैं गिरा भी लेकिन 100% सुरक्षित रहा, योग अभ्यास का लाभ मिला।
Ø बंगाल के इन क्षेत्रों में 1000 से अधिक नर्सरी (horticulture nursery) हैं, जिनमें 100 से अधिक अति विशाल हैं, पूरे देश के नर्सरी व्यवसाई यहां से ही पौधे मंगाते हैं।
Ø यहां नर्सरी कई प्रकार की हैं जहां देशी, विदेशी दोनों प्रकार के बोनसाई, फूलों, फलों तथा सजावटी पौधों का उत्पादन किया जाता है।
Ø कई नर्सरी वाले ऐसी भी हैं जो 10 से 20 फुट ऊंचे पेड़ भी बेचते हैं।
Ø कुछ नर्सरी वाले 100 लीटर के ड्रम में फलदार तैयार पेड़ 2500 रूपए प्रति की दर से बेचते हैं। जिनमें फल लगे होते हैं।
Ø ड्रैगन फ्रूट, ब्लूबेरी, क्रेन बेरी, तथा अन्य विदेशी ग्राफ्टेड पौधे भी थे।
Ø आम, अमरूद, जामुन, चीकू, बिना बीज के अमरूद, कमरख, कटहल, ऑल स्पाइस, सेब, कई प्रकार के बेर, रंबूतान, डूरियन, लीची आदि की अनेक विदेशी (जापान, वियतनाम, थाई, चीनी, कोरियन) प्रजातियां उपल्ब्ध थीं।
मैंने काफी जानकारी प्राप्त करने का प्रयास किया कि विदेशी पौधे भारत में आते कैसे हैं, क्योंकि लगभग सभी बड़े देशों की सरकारों ने पौधों के आयत पर कई प्रकार के प्रतिबंध लगा रखे हैं।
कई नर्सरी वालों से पता चला कि बंगला देश से ही काफी पौधे आते हैं, पड़ोसी बांग्लादेश में विदेशी कम्पनियों ने टिशू कल्चर लैब लगा रखीं हैं जिन्हें बांग्ला देश की सरकार की अनुमति प्राप्त है।
भारत बांग्लादेश व्यापार संधि के अंतर्गत इस प्रकार पौधों का आयात वैध-अवैध दोनों प्रकार से होता है।
मंगलवार 13 सितंबर को कलकत्ता में भाजपा की रैली होने से बंद जैसा माहौल था, कोई काम नहीं हो सका।
शाम को ग्वालियर की ट्रेन मैं बैठने पर पता चला कि मेरा टिकिट एक सप्ताह बाद की तारीख का है जो मेरी भूल से बुक हो गया था। किसी तरह व्यवस्था बनी।
आज शाम को मैं ग्वालियर पहुंच जाऊंगा।
यह यात्रा विवरण मैं ट्रेन में ही लिख रहा हूं।